Tuesday 26 July 2016

Desh Ka Doctor

Like करने से पहले पढ़ लो...
एक गाँव के लोग #ज्वर (बुखार) से पीड़ित थे, कई#नीम_हकीमो की दवा लेने के बाद भी ज्वर का प्रकोप जारी था। अंत में गाँव वालों ने इस से निपटने के लिए एक #डॉक्टरको नियुक्त किया। हकीमों ने गाँव वालों को भड़काने की कोशिश की लेकिन गाँव वालों को डॉक्टर से बहुत उम्मीदें थी। डॉक्टर की कठिन मेहनत के बाद ज्वर की समस्या कम तो हुई लेकिन पूरी तरह ख़त्म नहीं हो पा रही थी। डॉक्टर बिना परवाह #मेहनत करता जा रहा था फिर भी कुछ गाँव वालों का सब्र टूट रहा था और इसका लाभ लेकर नीम हकिम गाँव वालों को डॉक्टर के खिलाफ करने की कोशिश करने लगे। आखिर उनका धंधा जो चौपट हो रहा था।
अंत में वो कामयाब हुए और डॉक्टर को वापस भेज दिया गया। डॉक्टर के जाने के साथ ही गाँव वालों को कई बिमारियों ने घेर लिया।
असल में वह डॉक्टर ज्वर का इलाज़ तो कर ही रहा था लेकिन गाँव वालों को यह नहीं पता था कि आस पास के गाँव किसी#महामारी की चपेट में आ चुके थे और वह डॉक्टर ज्वर से लड़ने के साथ साथ उस महामारी के #संक्रमण को भी गाँव में आने से रोक रहा था।

आज यही हालात इस देश में हो रहे हैं जहाँ पूरी दुनिया मंदी के दौर से गुजर रही है वहीँ #भारत एकलौता वो देश है जो इस समय भी विकास कर पा रहा है।। लेकिन इस देश के नीम हकिम गाँव वालों को डॉक्टर के खिलाफ करने पर तुले हैं।

अब बताओ क्या हम भी अपने डॉक्टर श्री नरेंद्र मोदी को बदल दें क्योंकि अभी भी ज्वर समाप्त नहीं हो सका है??
#विशेष यदि आपने इस पोस्ट को पूरा पढ़ा है तो please इसे like ना करे, like करके आप साबित कर रहे कि आप बिना पढ़े समझे कुछ भी like करने को आतुर रहते हैं।।
अपने विचार रखें अथवा किसी मरीज को डॉक्टर की मेहनत के बारे में बता दे।। share करो मित्रों बेझिजक।।।
@n@nt


‎खाये_खाये‬ के मुटियाये

‪#‎खाये_खाये‬ के मुटियाये, भूख ना पूरी होये है।
भूखा बचपन बिलख रहा, ‪#‎तड़प_तड़प‬ के रोये है।।
\
ना तुझको ना फुरसत मुझको,
बात बड़ी सब करते हैं।
याद इन्हें कब करते हम,
जब पिज़्ज़ा बर्गर चरते हैं।
\
उम्मीद बांधते उनसे हैं,
जिनका मर चुका ईमान है।
थोड़ा तू कर थोड़ा मैं करूँ,
ये सब भी तो इंसान हैं।।
\
जगा उन्हें ओ बंधू प्यारे, जो मानव मूल्य सोये हैं।
भूखा बचपन बिलख रहा, तड़प तड़प के रोय है।।
@n@nt

अजब सा खंडह

अजब सा खंडहर बन के रह गया ये देश, कि हर साल कुछ डह जाता है।
जो बरसे ना तो सुखा, जो थोडा बरस जाये तो सब कुछ बह जाता है।।
अब क्या मैं दुआ करूँ कि बरसे, 
या फिर ना बरसे?
क्योंकि confuse तो बादल भी है,
जब जब वो बरसे कोई थमने को कह जाता है।। ‪#‎continue_reading_anant‬
@n@nt

बारिश होने लगी है बंधू

बारिश होने लगी है बंधू, कभी भीगने का मजा ले।
कुदरत कुछ सिखाती है ऐसे, कभी सिखने का मजा ले।।
क्यों डरता है तू पानी के छींटों से,
कुछ को लगने भी दे अंगो पर।
कभी बहार निकल और नजर लगा,
इंद्रधनुष के सत-रंगो पर।।
क्यों घुट घुट कर जीता है, कुदरत के संग खेल जरा।
बाहें वो फ़ैलाती देख, तू भी तो कर मेल जरा।।
बुदबुदाना छोड़ अब, कभी बिजली संग चीखने का मजा ले।
बारिश होने लगी है बंधू, कभी भीगने का मजा ले।
कुदरत कुछ सिखाती है ऐसे, कभी सिखने का मजा ले।।
@n@nt

नए मुकाम को चलते हैं।

चल भाई चल किसी नए मुकाम को चलते हैं।
क्या काम वहाँ जहाँ अपने अपनो से जलते हैं।।
घटते घटते घट गए तुम,
दुनिया के हर कोने से।
क्या किसी को फर्क हुआ, 
तेरे होने से ना होने से।।
अब तो बारी भारत की है,
सो जान बचाकर भागले।
आँख मींच के सोया तू,
जाग सके तो जागले।
उम्मीद करें तो किससे,
जहाँ सांप आस्तीन में पलते हैं।
चल भाई चल किसी नए मुकाम को चलते हैं।
क्या काम वहाँ जहाँ अपने अपनो से जलते हैं।।
@n@nt

आतंक का क्या धर्म है?

पता नहीं मुझे कि आतंक का क्या धर्म है।
इतना तो सच है इंसानी हाथों से शैतानी कर्म है।।
जिहाद जिहाद कहकर वो, 
कत्लेआम मचाता है।
दे हवाला अल्लाह का,
वो इसको सही बताता है।।
फिर जब वो कुर्बानी देता,
अपने इस फ़साने में।
छप्पन लगते चीखने,
हमको ये समझाने में।।
कि धर्म नहीं आतंक का,
वो तो भटके से मुशाफिर हैं।
समस्या लेकिन यह है कि,
हम उसकी नजरों में काफिर हैं।।
जब मिलेगा मौका वो फिर से हमला बोलेगा।
तेरे मेरे खून से पाप अपने धो लेगा।।
क्योंकि उसकी नजर में तो यह उसका धर्म है।
जन्नत का वो हक़दार बने, सब उसकी खातिर कर्म है।।
@n@nt

पहचान मुझे मैं भारत हूँ।।

पहचान मुझे मैं भारत हूँ।।
>>
क्रोधित हूँ, आवेशित हूँ, 
असहिष्णु तक घोषित हूँ।
अब भी क्या मैं चुप रहूँ, 
जब चहुँ दिशा से शोषित हूँ।।
पहचान मुझे मैं भारत हूँ।
>>...>>
हर जुल्म के आगे डटा रहा था,
तुफानो में मैं खड़ा रहा था।
तब भी घुटने टेके ना थे,
जिद्द पर अपनी अड़ा रहा था।।
वो दौर गया,
मैं आज़ाद हुआ,
सोचा अब मेरे भी दिन बदलेंगे।
ना जान सका,
पहचान सका,
कि शत्रु तो भीतर ज्यादा पनपेंगे।।
>
आज तो मैं अपनों से ही आहत हूँ।
पहचान मुझे मैं भारत हूँ।।
>>
छला जा रहा अपनों से,
झूठ मुठ के सपनो से।
दुष्ट निवाले छीन रहे,
दीन, दुखी और बच्चों से।।
जो भूल गए वो याद करो,
मैं ही शिव का तांडव हूँ।
रघुकुल का राम हूँ मैं,
अर्जुनरूपि पांडव हूँ।।
अधर्म का नाशी मैं महाभारत हूँ।
पहचान मुझे मैं भारत हूँ।
>>
इस धरा की खोई विरासत हूँ।
पहचान मुझे मैं भारत हूँ।
@n@nt -feel free to share ur views