चल भाई चल किसी नए मुकाम को चलते हैं।
क्या काम वहाँ जहाँ अपने अपनो से जलते हैं।।
घटते घटते घट गए तुम,
दुनिया के हर कोने से।
क्या किसी को फर्क हुआ,
तेरे होने से ना होने से।।
अब तो बारी भारत की है,
सो जान बचाकर भागले।
आँख मींच के सोया तू,
जाग सके तो जागले।
उम्मीद करें तो किससे,
जहाँ सांप आस्तीन में पलते हैं।
चल भाई चल किसी नए मुकाम को चलते हैं।
क्या काम वहाँ जहाँ अपने अपनो से जलते हैं।।
@n@nt
क्या काम वहाँ जहाँ अपने अपनो से जलते हैं।।
घटते घटते घट गए तुम,
दुनिया के हर कोने से।
क्या किसी को फर्क हुआ,
तेरे होने से ना होने से।।
अब तो बारी भारत की है,
सो जान बचाकर भागले।
आँख मींच के सोया तू,
जाग सके तो जागले।
उम्मीद करें तो किससे,
जहाँ सांप आस्तीन में पलते हैं।
चल भाई चल किसी नए मुकाम को चलते हैं।
क्या काम वहाँ जहाँ अपने अपनो से जलते हैं।।
@n@nt
No comments:
Post a Comment